प्रीतो ने एक उत्सव में जाना था तो उसने अपने शौहर सन्ता से पूछा- अजी सुनिये तो, जता बताइए कि मैं कौन सा सूट पहन कर जाऊँ? यह कढ़ाई वाला या यह लाल फूलों वाला?
सन्ता- लाल फूलों वाला पहन लो मेरे ख्याल से तो!
प्रीतो- लेकिन लाल फूलों वाला तो मैंने परसों पड़ोसियों के कीर्तन में पहना था..
सन्ता- अच्छा तो फिर कढ़ाई वाला ही पहन लो।
प्रीतो- तो अब ये तो बता दो कि इस सूट के साथ सैंडल पहनूँ या बेली?
सन्ता- बेली पहन लो…
प्रीतो- अरे तुम्हें नहीं पता मुझे पार्टी में जाना है, कथा-कीर्तन में नहीं। ये तड़क-भड़क वाले सैंडल होने चाहियें !
सन्ता- जैसे तुम्हें ठीक लगे ! सैंडल पहन लो।
प्रीतो- अच्छा बिन्दी कौन से रंग की अच्छी लगेगी? लाल या ये मैरून?
सन्ता- मेरे ख्याल से तो लाल ठीक रहेगी।
प्रीतो- तुम तो फैशन का ए बी सी भी नहीं जानते हो… मैंने जो सूट पहना है, उसके साथ यह मैरून अच्छी लगेगी।
सन्ता- तो मैरून बिन्दी लगा लो।
प्रीतो- अच्छा तो हाथ वाला छोटा बटुआ लेकर जाऊं या यह बड़ा हैण्डबैग?
सन्ता- बटुआ ले जाओ।
प्रीतो- अरे अब तो बड़े-बड़े हैण्डबैग का रिवाज है।
सन्ता- अरे तो हैण्डबैग ले जाओ, मुझे क्या फ़र्क पड़ता है।
प्रीतो जब पार्टी से वापिस आई तो काफी क्रोध में दिख रही थी।
सन्ता- अरे क्या हो गया? गुस्सा क्यों आ रहा है?
प्रीतो- अरे आप तो कोई भी काम सलीके से नहीं कर सकते…
सन्ता- क्यों भई, मैंने क्या कसूर कर दिया?
प्रीतो- पार्टी में सब औरतें मेरा मज़ाक बना रही थी कि कैसा सूट पहन कर आई, कैसी बिन्दी लगा रखी है, चप्पल और पर्स पर भी सब हंस कर मेरा मज़ाक बना रहे थे।
सन्ता- तो मेरा इसमें क्या कसूर है?
प्रीतो- सब चीजें मैंने आप से ही पूछ के ही तो पहनी थी, सलीके से बता देते तो क्या हो जाता? इससे बेहतर तो मैं अपने आप ही अपनी मर्जी से करती।
सन्ता- लाल फूलों वाला पहन लो मेरे ख्याल से तो!
प्रीतो- लेकिन लाल फूलों वाला तो मैंने परसों पड़ोसियों के कीर्तन में पहना था..
सन्ता- अच्छा तो फिर कढ़ाई वाला ही पहन लो।
प्रीतो- तो अब ये तो बता दो कि इस सूट के साथ सैंडल पहनूँ या बेली?
सन्ता- बेली पहन लो…
प्रीतो- अरे तुम्हें नहीं पता मुझे पार्टी में जाना है, कथा-कीर्तन में नहीं। ये तड़क-भड़क वाले सैंडल होने चाहियें !
सन्ता- जैसे तुम्हें ठीक लगे ! सैंडल पहन लो।
प्रीतो- अच्छा बिन्दी कौन से रंग की अच्छी लगेगी? लाल या ये मैरून?
सन्ता- मेरे ख्याल से तो लाल ठीक रहेगी।
प्रीतो- तुम तो फैशन का ए बी सी भी नहीं जानते हो… मैंने जो सूट पहना है, उसके साथ यह मैरून अच्छी लगेगी।
सन्ता- तो मैरून बिन्दी लगा लो।
प्रीतो- अच्छा तो हाथ वाला छोटा बटुआ लेकर जाऊं या यह बड़ा हैण्डबैग?
सन्ता- बटुआ ले जाओ।
प्रीतो- अरे अब तो बड़े-बड़े हैण्डबैग का रिवाज है।
सन्ता- अरे तो हैण्डबैग ले जाओ, मुझे क्या फ़र्क पड़ता है।
प्रीतो जब पार्टी से वापिस आई तो काफी क्रोध में दिख रही थी।
सन्ता- अरे क्या हो गया? गुस्सा क्यों आ रहा है?
प्रीतो- अरे आप तो कोई भी काम सलीके से नहीं कर सकते…
सन्ता- क्यों भई, मैंने क्या कसूर कर दिया?
प्रीतो- पार्टी में सब औरतें मेरा मज़ाक बना रही थी कि कैसा सूट पहन कर आई, कैसी बिन्दी लगा रखी है, चप्पल और पर्स पर भी सब हंस कर मेरा मज़ाक बना रहे थे।
सन्ता- तो मेरा इसमें क्या कसूर है?
प्रीतो- सब चीजें मैंने आप से ही पूछ के ही तो पहनी थी, सलीके से बता देते तो क्या हो जाता? इससे बेहतर तो मैं अपने आप ही अपनी मर्जी से करती।
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