Thursday, April 30, 2015

सम्भोग में नारी को परम आनन्द व संतुष्टि का अहसास

Sambhog me Nari Ko Param Aanand v Santushti ka Ahsas


यौन संवेदना का प्रथम अनुभव दिमाग में होता है, इसके बाद समस्त तंत्रिका-तंत्र से यह संदेश पूरे शरीर में पहुंचता है, दिमाग से ऐसे हारमोन निकलते हैं जिनसे ह्रदय को खून के दौरे में तेजी लाने का आदेश मिलता है। इस कारण संभोगलीन नारी का चेहरा तमतमा उठता है, कान, नाक, आँख, स्‍तन, भगोष्‍ठ व योनि की आंतरिक दीवारें फूल जाती हैं, भगांकुर सख्त हो जाता है और हृदय की धड़कन बढ़ जाती हैं।

योनि द्वार के अगलबगल स्थित बारथोलिन ग्रंथियों Bartholin Gland से द्रव रिस कर योनि को चिकनी कर देता है, जिससे नर लिंग का गहरायी तक प्रवेश सुगम हो जाता है। डाक्‍टरों के अनुसार, जब तक नर का लिंग स्‍त्री योनि की पूर्ण गहराई तक नहीं जाता, तब तक नारी को पूर्ण आनन्द नहीं मिलता।

उत्‍तेजना के कारण नारी के गर्भाशय-ग्रीवा से कफ जैसा दूधिया गाढ़ा स्राव निकलता है। इस स्राव से गर्भाशय मुँह चिकना हो जाता है, जिससे नर वीर्य और उसमें उपस्थित शुक्राणु सुगमता से तैरते हुए उसमें चले जाते हैं।
काम में सन्तुष्टि का अनुभव

यौन उत्‍तेजना के समय स्‍त्री की योनि के भीतर व गुदाद्वार के पास की पेशियाँ सिकुड़ जाती हैं। ये रूक-रूक कर फैलती और सिकुड़ती रहती हैं, यह इस बात का सबूत है कि नारी सम्भोग में पूर्ण रूपेण सन्तुष्‍ट हो गई है। नर अपने लिंग के ऊपर पेशियों के फैलने सिकुड़ने का अनुभव कर सकता है।
नारी आर्गेस्म की कई अवस्‍थायें

सम्भोग काल में हर स्‍त्री की चरमतृप्ति एक समान नहीं होती, हर स्‍त्री के आर्गेजस्म का अनुभव अलग होता है। परम तृप्ति या आर्गेस्म प्राप्ति के समय में नारी का योनि द्वार, भगान्कुर, गुदा की पेशियाँ व गर्भाशयमुख के पास की पेशियाँ लयबद्ध रूप से फैलने व सिकुड़ने लगती हैं। कभी-कभी ये पाँचों एक साथ गतिशील हो जाती हैं, उस समय नारी के आनन्द की कोई सीमा नहीं रह जाती।

कोई नारी अनुभव करती है कि उसका गर्भाशय मुख बार बार खुलता, फिर बन्द होता है। इसमें कई नारियों के मुख से सिसकारी निकलने लगती है।

कुछ नारियों में सम्पूर्ण योनि प्रदेश, गुदा से लेकर नाभि तक में सुरसुराहट की लहरें उठने लगती हैं, कई बार ये लहरें जाँघों तक चली जाती हैं। उस समय नारी के परम आनन्द का ठिकाना नहीं रहता।

कुछ स्त्रियों को लगता है कि उन की योनि के अन्दर गुब्‍बारे से फूट रहे हैं या फिर पटाखे फ़ूट रहे हैं। यह योनि के अन्दर तेज हलचल की निशानी है जो नारी को परमसुख से भर देता है।

आर्गेजस्म काल में नारी की दशा
जिस समय सम्भोग में नारी को आर्गेस्म की प्राप्ति होती रहती है उस समय उसकी आँखें मुंद जाती हैं, स्‍तनों के चूचुक फड़कने लगते हैं, कान के अन्दर सनसनाहट होने लगती है, बदन में हल्‍कापन महसूस होता है, मन में आनन्द की तरंगें दौड़ पड़ती हैं, प्रियतम के प्रति प्रेम से मन भर उठता है और कई बार हल्‍की सी भूख का भी अहसास होता है, कई नारियों को मूत्र त्याग की इच्छा होती है।
नर में वीर्यपात तो नारी में क्‍या?

नर के आर्गेस्म काल में उसके लिंग से वीर्य का बहाव होता है, जिससे उसे आनन्द की प्राप्ति होती है लेकिन आर्गेजस्म की अवस्‍था में स्‍त्री में ऐसा कोई बहाव होता है या नहीं, कामकला के विद्वानों में इस बात को लेकर काफ़ी मतभेद हैं। डॉक्टर विली, वेंडर व फिस्शर के अनुसार ज्यादा कामोत्‍तेजना के समय नारी का गर्भाशय सिकुड़ता है जिससे गर्भाशय का रस योनि में गिर पड़ता है। बहुत सी नारियों के गर्भाशय से श्लेष्मा जैसा पदार्थ निकलता है और पूर्ण योनि मार्ग को गीला कर देता है, इस बहाव में चिपचिपाहट होती है।
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