Saturday, March 28, 2015

तेरा निकाह मेरा जनाज़ा

तेरी डोली उठी

मेरी मय्यत उठी

फूल तुझ पर भी बरसे

फूल मुझ पर भी बरसे

फ़र्क़ सिर्फ़ इतना सा था

तू सज गई

मुझे सजाया गया

तू भी घर को चली

मैं भी घर को चला

फ़र्क़ सिर्फ़ इतना सा था

तू उठ के गई

मुझे उठाया गया.

महफ़िल वहाँ भी थी,

लोग यहाँ भी थे

फ़र्क़ सिर्फ़ इतना सा था

उनका हंसना वहाँ

इनका रोना यहाँ

क़ाज़ी उधर भी था

मौलवी इधर भी था

दो बोल तेरे पढ़े

दो बोल मेरे पढ़े

तेरा निकाह पढ़ा

मेरा जनाज़ा पढ़ा

फ़र्क़ सिर्फ़ इतना सा था

तुझे अपनाया गया

मुझे दफ़नाया गया…
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