Sunday, April 26, 2015

दुनिया की तो माँ की चू…!

Duniya Ki To Maa Ki Chu...!


दोस्तो, आज मैं आपके सामने एक ऐसी कहानी पेश करूंगा, जिसे पढ़ कर आप भी सोचेंगे के इंसान के मन में कब क्या चल रहा होता है, इसका कोई भी अंदाज़ा नहीं लगा सकता।

मेरा नाम सुकुमार है, मैं दिल्ली में रहता हूँ, बात 3 महीने पहले की है, उन दिनों बरसात बहुत हो रही थी।
एक दिन मैं वैसे ही अपने रूम में बैठा था, बाहर बरसात हो रही थी, मुझे ऐसे लगा जैसे कोई बाहर है।
मैं उस वक़्त टी शर्ट और बरमूडा में था, खाली बैठा था इसलिए अपने ही लण्ड से खेल रहा था, मौसम की नज़ाकत को समझते हुए लण्ड महाशय भी पूरी तरह से अकड़े पड़े थे।

मैं जब उठ कर बाहर गया तो देखा के बाहर हमारे बरामदे में एक 26-27 साल की सुंदर सी औरत खड़ी है।

मैंने उससे पूछा- जी कहिए?

उसके कपड़े थोड़े थोड़े बरसात में भीग गए थे, उसने मेरी तरफ देखा, ऊपर से नीचे तक, बरमूडा में मेरे तने हुये लण्ड को भी, फिर बोली- जी, वो मैं अपने बेटी को लेने स्कूल आई थी, मगर एकदम से बारिश आ गई तो मैं बस बरसात से बचने के लिए यहाँ रुक गई।

मैंने देखा, चूड़ीदार सूट में वो बढ़िया लग रही थी, भीगने की वजह से उसके कपड़े उसके बदन से चिपक गए थे, जिस वजह से उसकी भारी छाती, सपाट पेट और मोटी गोल जांघें, उसके कपड़ों से बाहर आने को हो रही थी।

मैं तो पहले से ही गरम था, सोचा कि अगर यह साली चुदने को मान जाए तो मज़ा आ जाए, मगर ऐसे पहली ही मुलाकात में कौन आप को देती है।
मैंने फिर भी ट्राई करने की सोची- आप तो बिल्कुल भीग गई हैं, आप चाहें तो अंदर आ कर बैठ सकती हैं।

वो बोली- जी नहीं शुक्रिया, मैं यहीं ठीक हूँ, बस थोड़ी सी बारिश कम हो जाए, मैं चली जाऊँगी।

मैं मन में सोच रहा था कि साली बेशक चली जा मगर जाने से पहले यार से चुदवा ले तो तेरा क्या घिस जाएगा।

खैर मैं अंदर से एक कुर्सी उठा लाया और लाकर उसको दी- चलिये आप इस पर बैठ जाएँ।

उसने मुझे एक स्माइल दी और कुर्सी पर बैठ गई। जब वो बैठी तो मैंने देखा कि क्या मस्त गाँड थी साली की, ये मोटे मोटे दो गोल मटोल चूतड़… अगर मुझे यह कह दे कि ‘ले मेरी गाँड चाट ले…’ तो मैं सिर्फ इस के लिए भी तैयार था।

‘आप कुछ लेंगी?’ मैंने पूछा।

‘जी नहीं… बस, शुक्रिया…’ उसने फिर हल्की सी स्माइल के साथ कहा।

मैं अंदर किचन में गया और दो कप कॉफी बना लाया, अब मेरा तना हुआ लण्ड भी बिल्कुल ढीला पड़ चुका था तो मैंने उसके और पास जाकर कॉफी का कप उसको दिया- यह लीजिये, कॉफी पीजिए, आपकी सर्दी दूर हो जाएगी।

वो थोड़ी असहज सी होते हुये बोली- अरे इसकी क्या ज़रूरत थी, आपने बेकार तकल्लुफ किया, मैं तो जाने ही वाली थी।
बात भी सही थी, किसी अंजान से कोई चीज़ लेकर खाना या पीना खतरे से खाली नहीं होता।

मगर जब मैंने थोड़ा सा ज़ोर लगाया, तो उसने कप पकड़ लिया। हम दोनों काफी पीने लगे और मैं उससे इधर उधर की बातें करने लगा।
बारिश थी कि बढ़ती ही जा रही थी। मैंने यह भी नोटिस किया कि वो चोरी चोरी कई बार बार मेरे बरमुडे को देख रही थी जैसे सोच रही हो कि ‘पहले तो बड़ा लण्ड अकड़ाये फिर रहा था, अब क्या हो गया?’

कॉफी पीने के बाद उसने स्कूल में फोन किया तो पता लगा कि छुट्टी तो हो गई है पर तेज़ बारिश की वजह से बच्चे बाहर नहीं निकले हैं।

मैंने उसे अपना छाता दिया, वो मेरा शुक्रिया करके छाता लेकर चली गई।

जब वो लौटी तो उसके साथ उसकी 3-4 साल की बेटी भी थी। हम दोनों को नयन फिर चार हुये, मैंने एक बड़ी सी स्माइल पास की और एक फ्लाइंग किस भी किया, चाहे यह दिखाने को छोटी बच्ची के लिए था, मगर मैं जानता था कि यह तो उस बच्ची की माँ के लिए था।

वो भी मुझे टाटा करके चली गई पर पता नहीं मुझे क्यों लगा के यह मुझे देकर जाएगी।
अगले दिन मैं फिर पूरी तैयारी के साथ अपने बरामदे में खड़ा उसका इंतज़ार कर रहा था। स्कूल की छुट्टी होने में अभी काफी टाइम था, मगर मैंने देखा कि वो तो सामने से चली आ रही है और उसके हाथ में मेरा छाता भी नहीं है।

वो मेरे पास आई, मैंने उसे हैलो कहा उसने भी प्यारी सी स्माइल दी और मुझे हैलो कहा।

मैंने जानबूझ कर उससे हाथ मिलाया तो उसने भी बड़ी आराम से हाथ मिला लिया, मैंने कहा- स्कूल की छुट्टी होने में तो अभी काफी टाइम है, कॉफी हो जाए।

उसने भी एक और प्यारी सी स्माइल मेरी तरफ फेंकी और बोली- क्यों नहीं, आप कॉफी बनाते ही इतनी अच्छी हो।

मैंने कहा- तो क्यों न कॉफी अंदर बैठ कर पी जाए, जब तक मैं कॉफी बनाता हूँ, आप टीवी देख लेना।

तो उसने फिर एक और कातिल स्माइल मेरी तरफ फेंकी और मेरे साथ ही अंदर ही आ गई।
आज भी उसने चूड़ीदार सूट पहना था और गजब की लग रही थी।

कॉफी बनाते बनाते मैंने सोचा, क्यों न इसे पकड़ लूँ, अगर विरोध भी करेगी तो भी इसके बूब्स तो दबा ही लूँगा और ज़बरदस्ती इसके होठ भी चूम लूँगा।
मगर दिमाग ने मना कर दिया।

मैं कॉफी बना कर लाया। हम दोनों इधर उधर की बातें करते रहे और कॉफी पीते रहे। मैं उसकी आँखें पढ़ने की कोशिश कर रहा था, मुझे लग रहा था कि उसकी आँखों से वो कुछ कह रही है, मगर क्या… यह समझ नहीं आ रहा था।

कॉफी खत्म हो गई, न मैं चाहता था कि वो जाए, न ही उसका जाने के मन कर रहा था, छुट्टी में अभी भी टाइम था, फिर भी वो उठ कर जाने लगी- ओके बाई, मैं चलती हूँ।

उसने कहा तो मैं भी उठ खड़ा हुआ- मैं तो नहीं कहूँगा कि आप जाओ!

यह कह कर मैंने उससे फिर से हाथ मिलाया और अपने दिल की बात कह ही डाली- आप मुझे बहुत अच्छी लगी।

उसने भी जवाब दिया- आप भी बहुत अच्छे हैं और कॉफी भी बहुत अच्छी बनाते हैं।

मैंने उसका हाथ नहीं छोड़ा और बोला- आप मुझे इतनी अच्छी लगी कि मुझे आप से पहली नज़र में ही प्यार हो गया है।

उसने मुझे घूर के देखा और बोली- आपको पता है मैं शादीशुदा हूँ।

मैंने हाँ में सर हिलाया तो वो बोली- पर सच कहूँ, कुछ ऐसा ही हाल मेरा भी है।

उसका इतना कहना था और मैंने उसके हाथ को और मजबूती से पकड़ा और अपनी तरफ खींच लिया, मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि वो एक कप कॉफी में ही पट गई।
जब मैंने उसका हाथ खींचा तो वो तो जैसे उड़ती हुई मेरे पास आई, और मैंने उसे अपनी बाहों में ले लिया। उसको दोनों, नर्म गोल बूब्स मेरे सीने से चिपक गए।
मैंने आव देखा न ताव, उसका सर पीछे से पकड़ा और अपने होंठ उसके होंठों पे रख दिये।
उसने भी पूरे जोश से मुझे अपनी बाहों में भर लिया।
होंठ चूसते चूसते ही मैंने उसके सारे बदन पर अपने दोनों हाथ फिरा दिये, उसको दोनों बूब्स दबाये, दोनों चूतड़ भी सहला दिये और तो और उसकी चूत पर भी उसकी सलवार के ऊपर से ही हाथ फेर दिया।
अगर मैं उसके होंठ चूस रहा था तो वो भी मेरे होंठों को चूस रही थी।

अब जब इतना सब हो गया तो कसर क्या बाकी थी, मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया और अपने बेड पे ले गया।
मैंने उसे लिटाया और खुद उसके ऊपर लेट गया। इस बार मैंने उसके दोनों बूब्स पकड़े और ज़ोर ज़ोर से मसल मसल के दबाये।
इतनी ज़ोर से कि उसे भी तकलीफ हुई।

मेरे तने हुये लण्ड ने मेरा बरमूडा ऊपर उठा रखा था, सो पहले मैंने अपने ही कपड़े उतारे। पूरा नंगा होने के बाद मैं उसके ऊपर उल्टा लेट गया।
मेरे बिना कुछ कहे उसने मेरा लण्ड पकड़ा और मुख में लेकर चूसने लगी, मैंने भी उसकी चूड़ीदार पाजामी उसके घुटनों तक उतारी और बिना चड्डी वाली उसकी चिकनी चूत को मुख में भर लिया।

मैं तो उसकी चूत को खा ही गया, वो भी मेरे लण्ड को अपने गले तक उतार कर चूस रही थी।

फिर मैं उठा, उठ कर उसके चेहरे की तरफ अपना मुँह किया, उसे उठा कर बिठाया और उसकी शर्ट और ब्रा उतार दी।

पहले उसके बूब्स थोड़े से दबाये, फिर चूसे जब वो बोली- बस अब और सब्र नहीं होता, अब बस डाल दो।
मुझे क्या आपत्ति हो सकती थी, मैंने भी अपना लण्ड सेट किया और उसकी चूत में घुसेड़ दिया।
शायद वो बहुत ज़्यादा गरम हो चुकी थी, सो 2-3 मिनट बाद ही वो एकदम से जोश से भर गई, मुझे सीने पे काट खाया, अपने नाखून मेरी पीठ में गड़ा दिये और बहुत ही ज़ोर ज़ोर से नीचे से कमर उचकाने लगी।

मैं भी समझ गया कि यह झड़ने वाली है, मैं भी घपाघप उसे चोदने लगा और तभी वो अकड़ गई और फिर ढीली सी होकर नीचे लेट गई।
मैं थोड़ा आराम आराम से करने लगा।
‘तुम इतने धीरे धीरे क्यों कर रहे हो?’ उसने पूछा।

मैंने कहा- तुम्हारा तो हो गया, तो मैंने सोच आराम से ही करते हैं।

‘अरे नहीं, मेरी तो आदत ही ऐसी है, मैं एक दो मिनट से ज़्यादा बर्दाश्त ही नहीं कर पाती, बस इतने में ही मेरा तो हो जाता है।’ उसने बताया।

मैंने पूछा- यह बताओ, तुम्हें मेरे साथ सेक्स करने मन कैसे कर गया?

‘सच कहूँ, तो जब कल तुम बाहर आए थे न, मुझे देखने, तुम्हारा वो तुम्हारे बरमूडा में अकड़ा हुआ देख के ही मेरा मन तुमसे सेक्स करने को कर गया था।’ उसने जवाब दिया।

मैंने पूछा- अगर मैं तुम्हें कल ही कहता सेक्स के लिए तो?

वो बोली- सच कहूँ, अगर तुम कल कहते तो मैं तुम्हें कल ही दे देती, मुझे अब भी नहीं मालूम कि मैं तुम्हारे साथ ये क्यों कर रही हूँ, पर जब मैं उसे देख लेती हूँ तो मेरा खुद पे काबू नहीं रहता, फिर तो मुझे चाहिए ही चाहिए, चाहे किसी का भी हो।

मुझे सोच कर बड़ी हैरानी हुई कि इंसान के दिल का कुछ पता नहीं कि वो कब क्या सोचता है, क्या चाहता है और क्या क्या इंसान से करवा देता है।

फिर मैंने भी कोई रहम उस पर नहीं किया, मेरा जहाँ जी किया मैंने उसे काटा, चूसा, उसके जिस्म पे यहाँ वहाँ कई जगह निशान डाल दिये और बड़ी बेदर्दी से उसको चोदा।

मैं जितना सितम उस पर करता वो उतना ही मज़ा लेती, उसकी चीखें, उसकी कराहटें, उसकी तड़प मेरे काम को और भी बढ़ा रही थी।

अब जब उसका तो हो चुका था, मैंने भी तेज़ तेज़ करना शुरू किया, मेरी 10 मिनट की चुदाई में वो 3 बार झड़ गई।

मुझे इस बात की बड़ी खुशी हुई कि मैंने एक ही चुदाई में एक औरत को तीन बार डिस्चार्ज कर दिया, मगर सच्चाई यह थी कि वो ही जल्दी झड़ जाती थी।

उसके बाद वो अक्सर मेरे घर आती रहती थी मैं करीब 2 साल और उस जगह पोस्टेड रहा और दो साल वो पूरा मुझे पत्नी का सुख देती रही।

दो साल बाद मेरी बदली हो गई और मैं दिल्ली से जयपुर आ गया, मगर वैसी बिंदास औरत मैंने आज तक नहीं देखी जो इतनी बिंदास हो जैसे कि अंग्रेज़ गोरियाँ, कि अगर किसी को देने का दिल किया तो दे दी अपना मन खुश रहना चाहिए… दुनिया की तो माँ की चू…!

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